‘अंकितग्राम’, सेवाधाम आश्रम, उज्जैन में भगवान की ऐसी कृपा होगी यह कल्पना नही थी वरन…
1 अक्टूबर विश्व वृद्धजन दिवस पर विशेष आलेख।
अंकितग्राम, सेवाधाम सेवा, प्रेम और आत्मीयता की त्रिवेणी है
डाॅ0 ऋषि भटनागर
CHairman – IET future technologies panel
President – Lava International, Delhi
अंकितग्राम, सेवाधाम आश्रम की मुख्य धरोहर सेवा, प्रेम और आत्मीय भाव है, यहां की सेवा जो स्वयं यहां के संस्थापक सुधीर भाई जिन्हें सब ‘‘भाईजी’’ एवं ‘‘पिताजी’’ कहकर पुकारते है के व्यक्तिगत संपर्क से यहां रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति को प्राप्त होती है, और उन्हें यह एहसास नही होता कि वह घर परिवार से दूर किसी निर्जन स्थान पर रहते है, भाईजी से चर्चा के दौरान मुझे मालूम पड़ा कि इस आश्रम की शुरूआत अत्यंत ही विषम परिस्थितियों में हुई। शुरूआती दिनों में उज्जैन से आने में 2 से 2.30 घंटे का समय लगता, पीने के पानी के लिए लम्बी दूरी तय कर डिब्बो और कावड़ में लाया जाता था, बिजली के अभाव में रात का सांय-सांय करता अंधेरा और जंगली जानवरों का बसेरा और उबड़-खाबड़ भूमि के साथ आर्थिक और मानव संसाधन इस आश्रम की मुख्य चुनौती थी, जो इनके कठिन परिश्रम और सेवा संकल्पों के चलते आज ‘अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम सम्पूर्ण परिसर प्राकृतिक वातावरण से आच्छादित होकर सुंदर और रमणीय स्थान बन गया है, यहां पर असंख्य पौधे और वृक्ष जहां साम्प्रदायिक सद्भाव की एक अनुपम ज्योत निरन्तर प्रज्वलित हो रही है। मैंने अनेक वृद्ध आश्रमों में देखा कि शरीर से स्वस्थ्य और अपने कार्य करने में सक्षम वृद्धों को ही प्रवेश मिलता है, किन्तु यहां पर प्राथमिकता से ऐसे वृद्धों को अपनाया जाता है, जो एकदम बीमार और मरणासन्न स्थिति में होते है, यहां अधिकतर वृद्ध बिस्तरग्रस्त होकर अनेक संक्रमणों के शिकार है।
ऐसी ही वृद्ध दम्पत्ति ऐसी मरणासन्न स्थिति में 70 वर्षीय शकीरा (बोहरा) एवं पति रियाजुद्दीन 65 वर्ष सड़क में लावारिस स्थिति में 27 अगस्त 2022 को आए। शकीरा के सिर में बड़े-बड़े घाव होकर छेद हो गए एवं उनमें कीड़े कुलबुला रहे थे, कान और सिर का हिस्सा मानो अलग ही होने को आतुर था को दयनीय एवं मलमूत्र में सनी अवस्था में आश्रम में प्रवेश दिया। सेवाधाम आश्रम के प्रथम सेवक सुधीर भाई ने जब वृद्ध माता की दर्द भरी आह सुनी तो उनके आंसू रूकने का नाम नही ले रहे थे कि माँ इतनी पीड़ा कैसे सहन कर रही थी कि उसके सिर के अन्दर छेद में सैकड़ों कीड़ेे उसके शरीर को खा रहे थे। माता के आश्रम आने बाद उनके केश कर्तन, नहलाया एवं उनके सिर के कीड़े निकालकर स्वयं सुधीर भाई ने अपने मार्गदर्शन में लगातार एक माह तक ड्रेसिंग की, आज एक माह बाद आप स्वयं उसके सिर की स्थिति देख रहे है। आज माँ के सम्पूर्ण घाव ठीक को वह मुस्कुराते हुए अनेक आशीर्वाद दे रही है। आज वह उनके पति के साथ निवासरत है।
राजकुवंर माँ आदिवासी भील जाति को ही ले तो वे कुष्ठरोग से पीड़ित हो ग्राम पड़ियार तहसील कुक्षी जिला धार में अपने भरेपूरे परिवार के साथ रह रही थी किन्तु वर्ष 2014 में गांववासियों के ताने सुन उन्हें गांव से निकालने का फरमान दे दिया कि कुष्ठ रोग पूरे गांव में फैल जावेगा और 2 बेटो एवं 1 बेटी की माता को गांव से निकलकर सेवाधाम आना पड़ा। आज उन्हें यहां रहते हुए 9 वर्ष हो चुके है वह रोग मुक्त होकर बच्चों के साथ अपना जीवन यापन कर रही है। यहां के बच्चों के दिव्यांग बच्चों को खाना खिलाना, नहलाना, कपड़े पहनाना और देखरेख का कार्य बड़े ही अच्छे मन से करती है।
यह है गुरूशरण सिंह वालिया उम्र 68 वर्ष यह कभी इलेक्ट्रिकल काॅन्ट्रेक्टर हुआ करते थे अनेक वर्ष पहले एक दिन इलेक्ट्रिक लाईन में आकर 20 फिट दूर फिका गये थे इस कारण वह बिस्तरग्रस्त हो गए। 13 वर्ष पहले वर्ष 2010 में बहुत ही दयनीय स्थिति में इन्हें स्ट्रेचर पर सेवाधाम लाया गया था, उम्मीद नही थी कि यह कभी अपने पैरों पर चल पाएंगे। आज गुरूशरण अपने दोनों पैरों से चल सकते है और आश्रम के दैनिक नित्य सेवा कार्यों जैसे रात्रिकालिन गेटकीपर, आश्रम में स्थापित आटा चक्की से आटा पिसना आदि कार्य पूर्ण निष्ठा से कर रहे है। प्रतिदिन बिल्वकेश्वर मंदिर पैदल दर्शन को जाते है।
यह है मुम्बई महाराष्ट्र के दादर में रहने वाली 81 वर्षीय आशा परदेसी, इन्हें कौन नही जानता, आश्रम का प्रत्येक बच्चा उन्हें दादी कहकर पुकारता है। वर्ष 2002 में बहुत ही विषय परिस्थितियों में सेवाधाम आई थी यहां के पारिवारिक वातावरण में रहते हुए उन्हें अपने बीते समय के दुःख को पूरी तरह भूल चुकी है, उन्हें 21 वर्षों में इतना प्यार और सम्मान मिला कि उन्हें अब अपने घर का पता भी याद नही। प्रत्येक रक्षाबंधन पर भाईजी को हमेशा राखी बांधकर कहती है यही मेरा प्यारा भाई है।
इनका नाम है सुगन बाई उम्र 85 वर्ष विगत 4 वर्षों में वह पूर्ण रूप से स्वस्थ है एवं उनके पैर का आधा हिस्सा चूहे खा गए थे एवं सड़ गया था। परिवार में 1 बेटी उनकी देखभाल नही कर पा रही थी उसे किसी ने सेवाधाम का बताया तो वह सेवाधाम इस उम्मीद में ले आई कि मेरी माँ अंतिम सांस सकुन से ले किन्तु भाई जी द्वारा लगातार उनके जख्मों को साफ कर ड्रेसिंग करना एवं सेवाधाम के स्वास्थ्य विभाग और देखभाल की बदोलत आज वह इतनी खुश रहती है कि आज वह 85 वर्ष की उम्र में भी दौड़ लगती है और भाईजी और भाभीजी को हंसते हुए दौड़कर गले लगा लेती है, और कहती है यह तो मेरा बड़ा भाई और भाभी है। उसके चेहरे की मुस्कान ही बताती है कि उन्हें सत्यवती महिला प्रकल्प में रहकर कितना आनन्द आता है।
यह है जैन साध्वी (पूर्व) जागृति बेन वर्ष 2010 में सेवाधाम में आई थी प्रवेश के समय जानकारी ज्ञात हुई थी कि उन्होंने 28 वर्ष पूर्व दीक्षा दी। पन्यास नरदेव सागर जी म.सा. की शिष्या कल्पयशाश्री जी म.सा. की शिष्या सम्यक रत्नाश्रीजी के रूप में नवसारी में दीक्षा प्राप्त कर प्रवचन किए किन्तु मानसिक स्थिति ठीक नही होने से कुलीनकांतजी लूथिया, मुम्बई उन्हें सेवाधाम लेकर आए। आज उन्हें 13 वर्ष हो चुके है वह अपना स्वयं का कार्य करती है एवं कभी कभी उनकी स्मृति आती है तो वह पाठ कर सबको शुभाशीष प्रदान करती है, आज उनके चेहरे पर तेज दिखाई देता है।
इनका नाम है अजय मिश्रा भोपाल के रहने वाले है हम सब उन्हें प्यार से वकील साहेब कहकर पुकारते है। उनका रहन-सहन अधिकारी जैसा है आप हमेशा उन्हें कोट पेंट या हाॅफ स्वेटर और शर्ट पेंट पहने देखंगे। वह कभी कभी काफी उग्र हो जाते है, मानसिक तोर पर उनकी उग्रता के कारण परिवार ने दूरी बना ली। इनका भाई दिल्ली में इंटेलिजेंस ब्यूरो में अधिकारी पद पर कार्यरत है, परिवार में 4 भाई बहने है। अब वह कभी भी अपने घर परिवार में जाना नही चाहते उन्होंने अपनी मृत्यु उपरांत देहदान का संकल्प लिया है। ऐसे सैकड़ों वृद्धों की कहानी है जो सेवाधाम की जुबानी है। आज वह आश्रम के मुख्य द्वारा की सुरक्षा में रत है।
दूसरी तरफ ऐसे वृद्ध भी यहां रहते है जिन्हें घर परिवार से कोई शिकायत नही लेकिन वह अपने जीवन के महत्वपूर्ण समय को यहां सेवा गतिविधियों से जोड़कर व्यतीत करते है। सेवाधाम में सभी जाति धर्म संप्रदाय के वृद्ध एक साथ एक परिवार के रूप में रहते है। यहां के मानसिक रूप से अस्वस्थ एवं विविध दिव्यांग युवा-युवती उनके संरक्षण में रहकर एक दूसरों की मदद के हाथ बढ़ाते है। जैसे यहां रहने वाले सब एक दूसरे के लिए बने हो। वे कभी आपस में लड़ते झगड़ते है तो हंसते मुस्कुराते भी है। यहां अपने पराये का कोई भेद नही। मृत्यु के बाद आश्रम ही उनके अंतिम संस्कार का निर्णय लेता है और सगे संबंधी और रिश्तेदारों को सूचना देता है लेकिन बहुत कम लोग आगे आते है अधिकांश मृतक से भी दूरी का रिश्ता बना लेते है। अनेक वृद्धों की मर्म स्पर्शी कहानियां सेवाधाम के दामन में छुपी है। इसका कोई अंत नही। वृद्धजन दिवस पर भाईजी का संकल्प है, ऐसे निराश्रित वरिष्ठजनों की सेवा सुश्रुषा और उनके जीवन में खुशियां लाने का हर पल प्रयास, ताकि उनके जीवन की खुशियां कभी गम में नही बदले।
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