सनातन धर्म की रक्षा के लिए सेवाधाम जैसे मानव सेवा के प्रकल्पों को आत्मनिर्भर बनाना…

अंकितग्राम, सेवाधाम आश्रम में कांता भाभी
1100 आश्रम परिवार में से 600 से अधिक बच्चों दिव्यागों और महिलाओं की मां के रूप में
कर रही सेवा और बेटियों को बना रही आत्म निर्भर
पीड़ित शोषित गर्भस्थ, निराश्रित, मरणासन्न और मनोरोग से पीड़ित सैकड़ो
बेसहारा महिलाओं को मिला सेवाधाम में घर-परिवार
ग्राम अम्बोदिया में गंभीर बांध के पास अंकित ग्राम, सेवाधाम आश्रम 36 वर्षों से पूरे भारत से आने वाली समाज की बहिष्कृत, तिरस्कृत वर्ग की ऐसी मनोरोगी और दिव्यांग महिलाओं और बेटे बेटियों का घर परिवार है जहाँ उन्हें पूरे मान सम्मान से रखा ही नही जाता अपितु कांता भाभी और सुधीर भाई के नेतृत्व में मालती देसाई, अवंतिका, मीना, संध्या, शकीना, मुस्कान, कला, रानी जैसी सेवा से समर्पित सेविकाओं के माध्यम से 600 से अधिक महिलाओं बच्चों के उचित रखरखाव के साथ ही उन्हें सांस्कृतिक और कला कौशल में भी निपूर्ण कर सम्मानजनक जीवन जीने का अवसर प्रदान किया जाता है। सेवाधाम आश्रम में आश्रित महिलाओं और बेटियों को आत्मनिर्भर बनाया गया जो आज आश्रम के दैनिक कार्यो में बुजुर्ग एवं अशक्त महिलाओं की सेवा-सुश्रुषा के साथ हस्त कौशल का कार्य कर रही है। आवासी विशेष बालिकाओं एवं महिलाओं को गौ प्रोडक्ट बनाने का प्रशिक्षण की व्यापक तैयारी चल रही है ताकि इन्हें आत्मनिर्भर बनाया जा सके।
अंकितग्राम, सेवाधाम आश्रम संस्थापक सुधीर भाई कहते है कि विगत 1989 से पूरे भारत से आने वाली समाज की बहिष्कृत, तिरस्कृत, वंचित वर्ग की पीड़ित शोषित और माता-पिता-पुत्र-पुत्रियों द्वारा सताई गई मनोरोगी और दिव्यांग महिलाओं एवं माातओं की सेवा-सुश्रुषा एवं उचित देखभाल कर रहा है जो निराश्रित, बेघर, बेसहारा, बेइज्जत होकर सड़क-अस्पताल, रेलवे स्टेशनों के आसपास अत्यंत ही दयनीय और मरणासन्न स्थिति में पड़ी होती है, जिनका अपना घर परिवार, समाज और बच्चे होते हुए भी उन्हें एक वक्त की रोटी भी नसीब होना मुश्किल होता है। ऐसी बेसहारों महिलाओं को अपनाकर सेवाधाम आश्रम अपने स्वस्थ पर्यावरणीय वातावरण में नवजीवन प्रदान कर परिवार की भांति वातावरण उपलब्ध करा रहा है।
आश्रम में आने वाली प्रत्येक महिला की एक ऐसी करूण कहानी है जिसे सुनकर विश्वास ही नही होता है। उनके अनुसार कुछ वर्ष पूर्व एक बेटा अपनी माँ को एक बड़ी लक्झरी कार में डालकर लाया और जब वह बताने लगा कि वह इस वृद्धा से अत्यधिक परेशान है, वह मोहल्ले में यहाँ-वहाँ गंदगी फैलाती है, परेशान करती है, यह सब सुन सहसा 95 वर्षीय माँ बोल उठी मेरो जायो मेरा ही सामने माँ केता भी सरम आए’। यह सुन उस भद्र पुरूष से पूछा तो उसने कहा यह सच है कि यह मेरी माँ है लेकिन इसके शोर-शराबे और परेशान करने से मेरी पूजा में विघ्न होता है इसलिए मैं घर में नहीं रखना चाहता। सुधीर भाई ने उस वृद्धा को आश्रम में रखा ही नही अपितु उसकी सेवा की और उसके अनन्त आर्शीवाद मिले माँ की अंतिम इच्छा थी कि मेरे मरने पर मेरा अंतिम संस्कार तुम ही करना क्योंकि तुम ही मेरे बेटे हो, कुछ वर्षों पश्चात उनके बेटे और समाजजनों की उपस्थिति में उज्जैन स्थित विद्युत शवदाह गृह में अंतिम संस्कार किया। माँ चाहती थी कि मेरे मृत शरीर पर भी मेरे बेटे का हाथ नही लगे। माँ की इच्छानुसार उनके इकलोते बेटे को अंतिम संस्कार स्थल से दूर ही रखा गया। इसी प्रकार अनेक दुःखी परेशान महिलाऐं सेवाधाम के सेवांगन में आई।