महाराजाधिराज, अग्रवालों के पितामाह अग्रसेनजी के जीवन आदर्शों से प्रेरित अनादि कुंभ नगरी उज्जैन में सेवा पथिक अग्रवंशीय सुधीर भाई गोयल द्वारा स्थापित मानव सेवा तीर्थ अंकितग्राम, सेवाधाम आश्रम

वैदिक समाजवाद के प्रवर्तक युगपुरूष रामराज्य के समर्थक महादानी, छत्रपति महाराजाधिराज अग्रसेनजी का जन्म भगवान राम के पुत्र कुश की 34वीं पीढी में 5143 वर्ष पूर्व हुआ, अग्रोहा हिसार अग्रवालों की पुण्य भूमि है उनके राज्य में कोई दीन दुःखी और लाचार नहीं था, बचपन से ही वे अपनी प्रजा में बहुत लोकप्रिय थें, वे धर्मप्रेमी, प्रजापालक, वात्सल्य, करूणा, दया, सबसे प्रेम, आत्मीयता और जीवों से प्रेम करने वाले सबके कल्याण की भावना रखने वाले एक महान महाराजा थे। नर-पशु बलि प्रथा के घोर विरोधी होने के कारण उन्होंने वैश्य धर्म अपनाया 15 वर्ष की आयु में पांडवों के पक्ष में महाभारत युद्ध लड़ा, भगवान कृष्ण ने टिप्पणी की थी कि अग्रसेन कलयुग में युगपुरूष और अवतारी होंगे।

भारतेन्दु हरिशचन्द्र के वृतांत के अनुसार महाराजा अग्रसेन एक सूर्यवंशी क्षत्रिय राजा थे, जिनका जन्म द्वापर युग के अंतिम चरणों में हुआ, वे श्रीकृष्ण के समकालीन थे, उन्होने अपना सम्पूर्ण जीवन भगवान राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध और भगवान महावीर स्वामी की भांति त्याग, तपस्या, प्रेम, भाईचारा व मर्यादाओं को समर्पित किया, वे अग्रवालांे के पितामाह थे, अनादि कुम्भ नगरी उज्जयेनी के पश्चिमी द्वार पर 84 महादेव अन्तर्गत, 83वें श्री बिल्केश्वर महादेव मंदिर के चरणों में गंभीर बांध के समीप उज्जैन रेल्वे स्टेशन से 18 किलोमीटर और इन्दौर एयरपोर्ट से 70 किलोमीटर दूरी पर बसा है ‘अंकित ग्राम’ सेवाधाम आश्रम, जो महाराजा अग्रसेन, महात्मा बुद्ध, महावीर स्वामी, स्वामी विवेकानंद और परोपकारी महापुरूषों के जीवन आदर्श अनुसार खण्डेला सीकर राजस्थान मूल के अग्रवंशीय सुधीर भाई गोयल द्वारा स्थापित है।

सुधीर भाई ने 13 वर्ष की उम्र मे 1970 से ग्राम अजनोटी में स्वामी विवेकानंद मण्डल की स्थापना से अपनी सेवा यात्रा की शुरूआत की जो 54 वर्षो से अनवरत सेवा, शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलम्बन, सद्भाव के साथ पर्यावरण, जीव दया और विविध क्षेत्रों में दूर सुदुर ग्रामीण अंचलों में जारी है। 54 वर्षों में सुधीर भाई का जीवन भी महाराजा और महापुरूषों के जीवन से प्रेरणा स्वरूप त्याग-तपस्या, प्रेम, आत्मीयता, सद्भाव और सर्मपण की मिसाल रहा, सेवापथिक के रूप में आपने, अपने जीवन मे अनेक कष्ट उठाए।

1975 में बद्रीनाथ में नवजीवन मिला, बचपन से ही आप महापुरूषों के जीवन से प्रेरित रहे, 1976 में आचार्य विनोबा भावे के मार्गदर्शन के बाद अपना मेडीकल प्रवेश छोड़ा, 1979 में पंचमढी मेे अभावग्रस्त बच्चो की जीवन रक्षा मे अपनी बांयी आंख की ज्योति गवाई।

सुधीर भाई का विवाह बिसाऊ राजस्थान हाल मुकाम इन्दौर जलगांव के पोद्दार गुप आफ इण्डस्ट्रिज में हरिप्रसादजी पोद्दार (बंसल) की बेटी, कांता से हुआ, कांता को सुधीर भाई के विचारों को आत्मसात करने मे समय लगा, किन्तु जैसे जैसे कांताजी सुधीर भाई के सेवाकार्यो के सम्पर्क में आने लगी, वैसे वैसे सेवा कार्यो के प्रति रूझान बढता गया।

1984 में इकलोते बेटे अंकित का जन्म, 1986 में पिता स्व. श्री सत्यनारायण जी गोयल के अभावगस्त जीवन से प्रेरणा लेकर (जिन्होने उज्जैन मे हारफूल मुंगफली बेची, बड़नगर तहसील में शिक्षक रहे, व्यवसाय के साथ पत्रकारिता क्षेत्र में स्थापित संघर्षमय जीवन और अनेक वरिष्ठ जनो के जीवन के साथ दादा दादी, नाना नानी, माता पिता और अनेक पूर्वज जिन्होने स्वातंत्र आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया से प्रेरणा लेकर उज्जयिनी वरिष्ठ नागरिक संगठन की स्थापना की।

बचपन से ही आपने अपने विक्षिप्त मामा, बधिर बडी दादी, भिक्षावृत्ति करते वृद्ध, स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी और मित्र के दिव्यांग भाई की पीडा को देखा और इनके लिए कुछ करने का संकल्प लिया, इस संकल्प में पिता स्व. श्री सत्यनारायणजी गोयल, माता स्व.श्रीमती सत्यवतीदेवी गोयल का विशेष सहयोग एवं आर्शीवाद मिला। संगठन की स्थापना के बाद अचानक कुष्ठधाम हामूखेडी पहुंचे, कुष्ठ रोगी नारायण की दुर्गा प्लाजा स्थित गेरेज मे लाकर सेवा की, जो पूर्ण रूप से बेड़सौर के घावो की पीडा से मरणासन्न था, 1987 में मदर टेरेसा और 1988 में बाबा आमटे ने प्रत्यक्ष आपकी कुष्ठ सेवा कार्यो को देखा, समझा बाद में सुधीर भाई ने अपनी ऐशोआराम और वैभवपूर्ण जीवन, व्यापार व्यवसाय, तमाम विरोधों के बाद छोडकर , उज्जैन से 15 किलोमीटर दूर बिल्वकेश्वर महादेव के समीप उबड़-खाबड़ बंजर भूमि को आश्रम निर्माण हेतु चयन किया और 14 बीघा भूमि आश्रम निर्माण हेतु दान में दी जहाँ श्रम-साधना के साथ आश्रम का निर्माण हुआ। जहाँ जंगली जानवरो का बसेरा था, अंधियारी रातो मे एक पल भी जीना मुश्किल था, यहाॅ तक कि पीने का पानी भी दूरस्थ स्थानो से कावड़ में लाना होता था, ऐसी विषम परिस्थितियो में अनेक विरोधों, आलोचनाओं, के बीच आपने अपना तन-मन-धन समर्पित किया, इस कार्य में आपकी सहधर्मिणी कांता का भी अभूतपूर्ण योगदान रहा।

सुधीरभाई को आश्रम स्थापना के बाद परमात्मा की अनेक परिक्षाओं से गुजरना पड़ा, सबसे पहले 1991 में इकलौते पुत्र अंकित की 7 वर्ष की अवस्था में मृत्यु, 1992 में इकलौती बहन अमिता की पति के क्रूर हाथो हत्या और 1993 में पिता का चले जाना भी आपके सेवा कार्यो को प्रभावित नही कर सका, आपने और अधिक ताकत से अपने सेवा कार्यो को गति दी।

मिट्टी की झोपड़ी में 95 वर्षिय गुलाब मां और कुष्ठरोगी नारायण की सेवा के समय उनके मुस्कुराते चेहरो मे भगवान के दर्शन हुए और ऐसे ही भगवानो को सड़क अस्पताल बस-रेल्वे स्टेशनो पर तलाशते रहते आश्रम लाते अपने हाथों से उनकी सेवा करते और मानव सेवा- माधव सेवा के अपने सूत्र वाक्य को सार्थक करते। अग्रवंशीय सुधीर भाई के मानव सेवा कार्यो को श्री प्रबलसिंह सुराणा, समरथमल संघवी, श्रीमती सूरजबेन वोरा, श्री राधेश्याम शर्मा ‘गुरूजी’, श्री रतनलाल जी डिवानिया, अग्रवंशीय उद्योगपति श्री विनोद अग्रवाल, श्री पवन सिंघानिया (मोरया), श्री सुभाष गोयल (बजरंग), श्री ताराचन्द अग्रवाल, श्री मुरली पटवारी सहित अनेक उद्योगपति और समाजसेवियों ने अपना योगदान देकर आगे बढ़ाया।

अंकितग्राम मे 9000 से ज्यादा बेघर बेसहारा, शारीरिक, मानसिक दिव्यांगों, मनोरोगियों, कैंसर, टीबी, एचआईवी और संक्रामक रोग से पीडितों के साथ ही पीडित शोषित गर्भस्त माताओं और उनके बच्चों को अपनाया ही नही अपितु उन्हे स्वावलम्बन और पुर्नवास के माध्यम से सम्मानपूर्वक नव जीवन मिला।

भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने कच्छ भुज में 13 माह तक किए गए कार्य को सराहा एवं अनेक राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, केन्द्रीय और राज्य मंत्रियों ने भी आपके सेवा कार्यों को सराहना की।
आपको राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर अनेक प्रतिष्ठित सम्मानो से सम्मानित किया गया।

जैनाचार्यों, मुनि भगवंतों, संतो और प्रशासनिक अधिकारियों ने भी समय समय पर आपके कार्यो को देखा सराहा, वर्तमान में सेवाधाम आश्रम मे नित्य 900 से अधिक पीड़ितों की सेवा हो रही है।
कोरोना मे भी नित्य भोजन वितरण और बेघरों हेतु आश्रम की उल्लेखनीय सेवाएँ रही है, जो आज भी निरन्तर की जा रही है।

सुधीर भाई का कहना है, मेरा जन्म भगवान राम और महाराजा अग्रसेन के वंश में हुआ सूर्य और क्षत्रिय वंश थे, महापुरूषो के जीवन आदर्शो का प्रभाव पड़ा और उनके आदर्श पथ पर परमात्मा और सद्गुरू देव की अनुपम कृपा से मानवता की सेवा का कार्य मिला यह मेरे जीवन की बडी सफलता है। आश्रम के विकास और विस्तार के लिए आपने आचार्य महाप्रज्ञजी की निश्रा में अन्न त्याग का संकल्प लिया जो 12 वर्ष में पूर्ण हुआ इसी प्रकार 22 फरवरी 2024 को महावीर जिनालय के शुभारंभ पर भिवण्डी में अन्न त्याग का महासंकल्प लिया है।

आपने मृत्यु के बाद आश्रम मे ही अपना अंतिम स्थान ‘‘सत्यांश सेवा भूमि’’ तय कर दिया और मृत्यु के बाद मोक्ष और स्वर्ग की भी इच्छा नही रखते है, उन्हें पुनः मानवता की सेवा हेतु श्रेष्ठ मानव जीवन चाहिए।

आपका कहना है ‘‘सेवा से किसी पीड़ित के चेहरे पर आने वाली मुस्कान में ही मुझे मेरे प्रभू के दर्शन होते है

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