वरिष्ठ पत्रकार एवं लेखक और मेरे बड़े भ्राता श्री टिल्ल्लन रिछारियजी का अचानक चले जाना अत्यंत दुःखद और अनसोचा क्षण रहा। जब 28 जुलाई 2023 को मेरे लघु भ्राता तुल्य और हितचिंतक पद्मश्री श्री उमा शंकर पाण्डेजी ने मुझे फोन पर जानकारी दी कि टिल्लन भाई अब हमारे बीच में नही है, वे 27 जुलाई 2023 को दिल्ली से अकेले ही जावरा में जैविक कृषि से सम्बंधित एक सम्मेलन में किसानों का मार्गदर्शन कर रहे थे, वहां से सेवाधाम आने का प्रोग्राम था। रात्रि में जावरा में रूके, सुबह 4 बजे करीब घबराहट हुई अस्पताल ले गए लेकिन उन्हें बचाया नही जा सका और ह्रदयाघात के चलते वे हमेशा-हमेशा के लिए हमसे दूर कहीं दूर चले गए। यह समाचार सुनते ही मैं अवाक रह गया तनिक भी विश्वास नही हुआ कि टिल्लन भाई जैसा जीवट, जिंदादिल, आत्म स्वाभिमानी, लेखनी के शूरवीर अब हमारे बीच नही रहे।  तत्काल उनके बेटे रवि एवं परम स्नेही श्री लोकेश शर्माजी से मोबाईल पर चर्चा हुई, रवि ने भी इस बात की पुष्टि की किन्तु मन नही मान रहा था। टिल्लन भाई की देह जावरा से दिल्ली के लिए निकल चुकी थी, अनिलजी और साथी साथ थे, मन नही माना और अंतिम दर्शन के लिए अपने आप को रोक नही सका, रात्रि 11 बजे की फ्लाइट लेकर लगभग अर्धरात्रि में हरिजन सेवक संघ गांधी आश्रम पहुंचा, जहां पहले से ही हरिजन सेवक संघ के राष्ट्रीय सचिव श्री संजय रायजी ने मेरे आवास की व्यवस्था की थी। यहां धुलिया के कृष्णा मिले, अल सुबह विनोबा सेवा आश्रम, शाहजहांपुर के संस्थापक श्री रमेश भइयाजी भी हरिजन सेवक संघ की 1932 में महात्मा गांधीजी द्वारा स्थापित हरिजन सेवक संघ की सेंट्रल बोर्ड एवं मार्गदर्शक बैठक में पहुंच चुके थे और मेरा कार्यक्रम 30 जुलाई को निर्धारित था। इसके पूर्व ही 28 जुलाई की दोपहर रमेश भइयाजी से चर्चा हो चुकी थी। मैं और रमेश भइया रिछारियाजी के अंतिम संस्कार में सम्मिलित होने इंदिरापुरम आम्रपाली ग्रीन गाजियाबाद स्थित उनके निवास पर पहुंचे।  उनकी देह सफेद कपड़े से लपेटी हुई शव पेटी में रखी हुई थी यह दृश्य अत्यंत ह्रदय विदारक था। श्रीमती रिछारिया, रवि और उनके परिवार के दुख का अंदाजा लगाना मुश्किल था। श्रीमती रिछारिया (भाभीजी) बार-बार मुझसे सेवाधाम आश्रम में रिछारिया जी के साथ आई उस पल को याद कर रही थी और उनके अचानक चले जाने से वे अपनी सुधबुध खो चुकी थी।  उन्हें और परिवार को ढांढस बंधाया। 11.00 बजे करीब हिंडन घाट स्थित अंतिम संस्कार स्थल पहुंचे और उनका विधि विधान के साथ अंतिम संस्कार सम्पन्न हुआ। इस अवसर पर अंकितग्राम, सेवाधाम आश्रम के अध्यक्ष डाॅ. ऋषि मोहन भटनागर भी विशेष रूप से अपने बुजुर्ग माता-पिता की बीमारी हालत में भी उन्हें छोड़कर अंतिम संस्कार में शामिल हुए।

श्री टिल्लन रिछारियाजी का यूं चले जाना मेरे लिए बहुत बड़ी क्षति है जिसकी पूर्ति संभव नही, टिल्लन भाई के साथ ऋषिकेश में स्वामी चिदानंदजी के आश्रम में रूकने का भी अवसर मिला जहां उन्होंने ‘‘मेरे आसपास के लोग’’ नामक पुस्तक मुझे बड़े स्नेह के साथ भेंट की, वह यादगार क्षण कभी भूला नही जा सकता।

टिल्लन भाई से 3 वर्ष पूर्व श्री उमा शंकर पाण्डेजी के साथ दिल्ली स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान् में संक्षिप्त मुलाकात हुई थी। बाद में वह अंकितग्राम, सेवाधाम आश्रम आए और सेवाधाम आश्रम के ही होकर रह गए। उनका पूरा परिवार सेवाधाम आश्रम से जुड़ा हुआ था। उनके बेटे रवि आश्रम से सम्ंबधित सभी सोशल मीडिया के कार्य अपने प्रतिष्ठान के माध्यम से देख रहे थे। अक्सर रवि और टिल्लन भाई से दूरभाष से चर्चा होती रहती थी, वे मेरे सामाजिक जीवन की शुरूआत 1970 से वर्तमान समय तक को लेकर किए गए सेवा कार्यों पर एक पुस्तक का लेखन कर रहे थे।  लोकेश शर्माजी और टिल्लनजी ने आगामी एक दो माह में उसके प्रकाशन का संकल्प लिया था और काफी काम हो चुका था। 29-30 तारीख को वे सेवाधाम आने वाले थे ताकि पुस्तक को अंतिम रूप दिया जा सके लेकिन विधि के विधान के सामने सभी को नतमस्तक होना पड़ता है।  उनके देवलोक गमन से मैं बहुत ही व्यथित हूं, एक अच्छे भाई, अच्छे साथी और देश के लिए अच्छी सकारात्मक सोच रखने वाले पत्रकार का यूं चला जाना मेरे और मेरे परिवार की व्यक्तिगत क्षति है।

सेवाधाम आश्रम परिवार टिल्लन भाई को कभी भूल नही पाएगा। उनके रहते हुए जो भी पारिवारिक रिश्ता था वह बना रहेगा। उनके बेटे रवि ने भी मुझे विश्वास दिलाया कि टिल्लन भाई कई विषयों पर कार्य कर रहे थे उनके अधूरे कार्य पूर्ण निष्ठा के साथ पूर्ण करेंगे शायद यही सबसे बड़ी श्रद्वांजलि होगी और वे अपनी लेखनी के माध्यम से सदा जीवन्त रहेंगे। वे हमेशा कैमरे के पीछे रहते थे उनकी अनेक यादें सेवाधाम के साथ जुड़ी हुई है जो कभी विस्मृत नही हो सकेगी।