‘अंकितग्राम’, सेवाधाम आश्रम, उज्जैन में भगवान की ऐसी कृपा होगी यह कल्पना नही थी वरन…
जिला प्रशासन की संवेदनशीलता से केन्द्रिय जेल उज्जैन में सजायाफ्ता निरुद्ध बंदी ने सेवाधाम के बहु दिव्यांग पुत्र का जेल प्रशासन के सहयोग से पुलिस बल की उपस्थिति में किया अंतिम संस्कार।
[/et_pb_text][et_pb_text _builder_version=”4.19.5″ _module_preset=”default” hover_enabled=”0″ global_colors_info=”{}” sticky_enabled=”0″]‘अंकितग्राम’ सेवाधाम आश्रम में ऐसा ही कुछ वाकया देखने को मिला। जहाँ इस संसार में मानवीय संवेदना क्षीण हो रही है वही जिला प्रशासन एवं पुलिस-जेल के त्वरित सहयोग से 2014 से सजायाफ्ता आजीवन कैदी ने अपने बहु दिव्यांग बालक का किया अंतिम संस्कार।
सेवाधाम आश्रम संस्थापक सुधीर भाई ने बताया कि वर्ष 2020 में जिला कलेक्टर उज्जैन की अनुशंसा पर बहु दिव्यांग 5 वर्षीय बालक को सेवाधाम आश्रम में प्रवेश दिया गया था। उसके पिता 2014 से केंद्रीय जेल भैरवगढ़ में आजीवन कारावास की सजा काट रहे है और माता अपने बिस्तर ग्रस्त बहु दिव्यांग पुत्र को संभालने में असमर्थ थी। जिला कलेक्टर श्री शशांक मिश्र के आदेश से सेवाधाम आश्रम ने इस बहु दिव्यांग बच्चे को अपनाया था।
गत रात्रि, 07 फरवरी 2023, को बालक की अचानक तबीयत खराब होने पर उसे जिला चिकित्सालय भेजा गया। जिला चिकित्सालय में मृत्यु पश्चात उसके परिवार से संपर्क किया गया किंतु परिवार अंतिम संस्कार में सम्मिलित नहीं हो पा रहा था। तब उसके पिता जो केंद्रीय जेल में सजा काट रहे है उसकी जानकारी तत्काल जिला प्रशासन को दी गई जिसने 3 घंटों में तत्परता दिखाते हुए मानवीय संवेदनाओं के तहत सजायाफ्ता पिता को अंतिम संस्कार करने हेतु पेरोल का आदेश दिया। बालक के पोस्टमार्टम पश्चात सायंकाल बालक के पिता ने सुधीर भाई की उपस्थिति में अपने पुत्र के अंतिम दर्शन कर अंतिम संस्कार किया। सभी की आंखे नम थी वही पिता को गहरा अफसोस था की वह पूर्व में पेरोल पर होते हुए भी अपने पुत्र को जीवित नही मिल सका।
यह कहानी है एक ऐसे बहु दिव्यांग बेटे की है जिसे जीते जी न माँ का प्यार मिला न बाप का, माँ का प्यार इसलिए नही मिला क्योंकि माँ अपने ही पुत्र को न तो दो वक्त की रोटी दे पाने में समर्थ थी और न ही उसका ईलाज करवाने को उसके पास पैसे थे। बाप भी मासूम के दुनिया में आने से पहले ही लूटपाट एवं हत्या काण्ड में आजीवन जेल की सलाखों के पीछे पहुंच गया था। पति के जेल जाने के बाद गर्भवती पत्नी ने जिस मासूम को जन्म दिया, वह जन्म से ही बहु दिव्यांग था और किस्मत ने उसे ‘अंकित ग्राम’, सेवाधाम आश्रम पंहुचा दिया, जहाँ मासूम का हर तरह से न सिर्फ ध्यान रखा गया बल्कि उचित ईलाज भी दिया गया। लेकिन जन्म से ही गंभीर बिमारियों के चलते उसने जिन्दगी का दामन छोड़ दिया।
सुधीर भाई कहते है कि आश्रम में जब किसी की मृत्यु होती है तो अंतिम संस्कार वे स्वयं करते है, लेकिन यदि आश्रम में रहने वाले का कोई भी रिश्तेदार देश में कही भी है तो उसे न सिर्फ सूचित किया जाता है बल्कि अंतिम संस्कार भी वही करें ऐसा प्रयास किया जाता है। इस मामले में भी जब उसकी माँ से सम्पर्क करने का प्रयास किया गया तो उसकी जानकारी नही मिल पायी एवं परिजनों ने कहा कि हम लोग कोई नही आएंगे आप लोग ही अंतिम संस्कार कर दें। लेकिन सुधीर भाई यह चाहते थे कि मासूम के अंतिम दर्शन उसके पिता तो कर ले। परन्तु दुविधा यह थी कि उसके पिता केन्द्रिय जेल भैरवगढ़ में आजीवन सजा काट रहे थे, लेकिन सुधीर भाई ने हार नही मानी और आश्रम के अथक प्रयासों से मात्र साढे तीन घण्टे में आपात पैरोल के आदेश जिला प्रशासन ने देकर उसके मासूम बेटे का अंतिम संस्कार पिता के द्वारा सम्पन्न कराया।
इस कार्य में बालगृह अधीक्षक शैलेन्द्र कुमावत का सराहनीय कार्य रहा।
अनोखा पेरोल……..
आमतौर पर जेल में बंद किसी कैदी को पेरोल पर तय समय के लिए छोड़ने का आवेदन उसके परिजन देते है और एक लम्बी प्रक्रिया के बाद पेरोल देने के आदेश होते है क्योंकि शासन के नियमानुसार पेरोल प्रदान करने की एक प्रक्रिया है। लेकिन इस मामले में यह देखा गया कि कलेक्टर कार्यालय, पुलिस अधीक्षक कार्यालय, सहित पुलिस विभाग के साथ जेल प्रशासन के अधिकारियों ने मानवीय संवेदनाओं को सामने रखते हुए महज कुछ घण्टो में पैरोल प्रदान कर एक मिसाल कायम कर दी। यह इस बात का सूचक है कि जिला प्रशासन की कार्यशैली संदेनशील और अतुलनीय है जो अपने आप में एक मिसाल है।
सेवाधाम आश्रम ने माननीय अपर सत्र न्यायाधीश, जिला कलेक्टर, पुलिस अधीक्षक कार्यालय जेल अधीक्षक, पुलिस एवं डीआरपी लाईन के कार्यों की सराहना की और उन्हें धन्यवाद दिया।
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